Monday, November 12, 2018

राजनीति और चुनाव पर कितना असर डालती है फ़ेक न्यूज़

संभव है कि आपको भी कभी ऐसा व्हाट्सएप्प मैसेज मिला हो कि भारत के राष्ट्रीय ध्वज को दुनिया का सबसे बेहतरीन ध्वज घोषित किया जा चुका है. या भारत की करेंसी को यूनेस्को ने सर्वश्रेष्ठ घोषित किया है या आपका धर्म ख़तरे में है और उसे बचाने की ज़रूरत है.

अक्सर इस तरह के मैसेज मिलने पर हम उन्हें बिना जांचे परखे आगे फ़ॉर्वर्ड कर देते हैं और जाने-अनजाने फ़ेक न्यूज़ के मायाजाल में फंस जाते हैं.

फ़ेक न्यूज़ की समस्या से इस समय पूरी दुनिया परेशान है, इसी सिलसिले में बीबीसी ने एक रिसर्च जारी की है जिसके ज़रिए यह बात सामने आई कि लोग राष्ट्र निर्माण की भावना से राष्ट्रवादी संदेशों वाली फ़ेक न्यूज़ को साझा कर देते हैं.

यह रिसर्च बीबीसी के प्रोजेक्ट के तहत की गई है. यह ग़लत सूचनाओं के ख़िलाफ़ एक अंतरराष्ट्रीय पहल है.

बीबीसी ने अपनी रिसर्च में पाया कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ट्विटर हैंडल जितने अकाउंट को फ़ॉलो करता है उनमें से क़रीब 56 प्रतिशत वैरिफ़ाइड नहीं हैं. इन बिना वैरिफ़िकेशन वाले अकाउंट से 61 प्रतिशत बीजेपी का प्रचार होता है.

इस रिसर्च के बारे में बीजेपी प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल कहते हैं, "इस बात में कोई संदेह ही नहीं है कि फ़ेक न्यूज़ एक बहुत बड़ी चुनौती है. चुनौती इसलिए भी बड़ी है क्योंकि चुनाव आने वाले हैं. 2019 के चुनावों के लिए अभी से बहुत से लोग सोशल मीडिया पर सक्रिय हो गए हैं, जिनका काम ही फ़ेक न्यूज़ फैलाना है."

हालांकि, गोपाल कृष्ण अग्रवाल ये भी कहते हैं कि जैसे-जैसे चुनाव नज़दीक आते हैं, विपक्ष के लोग कुछ भी बोलने और पोस्ट करने लग जाते हैं ताकि सरकार उनका जवाब देती फिरे.

वो कहते हैं, "कभी कोई गौ-रक्षा के नाम पर फ़ेक न्यूज़ फैला देता है तो कभी दलितों के नाम पर."

पर वो ये भी मानते हैं कि फ़ेक न्यूज़ न फैले ये सिर्फ़ सरकार के ही नहीं, सभी के हित में है. लेकिन इसे कंट्रोल कर पाना थोड़ा मुश्किल है.

गोपाल मानते हैं कि सोशल मीडिया संचार का बेहतरीन माध्यम है लेकिन फ़ेक न्यूज़ की वजह से अब इस माध्यम की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े होने लगे हैं.

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